Friday, February 28, 2014

भारत में मर्द होना भी आसान नहीं

नवभारत टाइम्स | Feb 28, 2014, 01.00AM IST

पिया हायकिला
हाल ही में मेरे मूल देश फिनलैंड से एक दोस्त ने फोन किया, 'तुम उस खौफनाक जगह पर रह कैसे सकती हो जहां हमेशा महिलाओं के साथ रेप होता रहता है?' उसका मतलब डेनमार्क की एक महिला के साथ दिल्ली में- जिसे मैं अपना घर कहती हूं- हुए गैंग रेप से था। स्वाभाविक रूप से, मैंने अपने शहर का बचाव किया- 'बात बस इतनी सी है कि पहले के मुकाबले अब रेप की खबरें ज्यादा आ रही हैं। इस देश में 65 करोड़ से ज्यादा मर्द हैं और वे सब के सब रेपिस्ट नहीं हैं।' वह सहमत नहीं थी- 'अरे, लेकिन उन्होंने सामूहिक बलात्कार किया, एकसाथ। ऐसा कैसे हो सकता है? फिनलैंड में तो ऐसा नहीं होता।'
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ग्रुप रेप कैसे?
मैं यह समझ ही नहीं पाती कि आखिर यह कैसे मुमकिन है कि एक आदमी खड़ा देखता रहे और दूसरा उसके सामने किसी तीसरे को तकलीफ देता रहे? लोग अगर मिलकर कुछ करते हैं तो वह कोई ऐसा काम होना चाहिए, जिसमें टीम स्पिरिट हो। गैंग रेप कोई गेम या स्पोर्ट नहीं है। यह मर्दों को पाशविक, परपीड़क भावनाओं से जोड़ने वाली गतिविधि है। लेकिन, क्या स्त्रियों के खिलाफ की जाने वाली यह क्रूरता केवल भारत तक सीमित है? महिलाओं के खिलाफ हिंसा हर देश में है। यह गैर-पश्चिमी देशों तक सीमित नहीं है। अगर कहा जाए कि ऐसा सिर्फ विकासशील देशों में होता है, तो भी भारत को लेकर मेरी दोस्त के मन में बनी पिछड़े और बर्बर देश की छवि मजबूत होती है, जो सच नहीं है।

बावजूद इसके, मेरा दत्तक देश सवालों से नहीं बच सकता। दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक आम बात है। सड़कों पर, सार्वजनिक स्थानों पर, घरों के बंद दरवाजों के पीछे। लेकिन मुझे सबसे ज्यादा एतराज है कंधे उचका देने वाली प्रवृत्ति पर। यानी इन चीजों को लेकर जो एक तरह की व्यापक स्वीकार्यता दिखती है, उस पर। खासकर उन लोगों के बीच फैली स्वीकार्यता पर, जिनके हाथों में बदलाव लाने की ताकत है। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र महिला आयोग की सदस्य आशा मिरगे ने कहा,'रेप होने की वजह महिलाओं के कपड़े, उनका व्यवहार और उनका अनुपयुक्त जगहों पर जाना भी है।' इन जैसे लोगों की वजह से ही यहां महिलाएं सताए जाने को अभिशप्त हैं, और कोई भी खुलकर नहीं कहता कि यह गलत है।

हम विदेशी जानते हैं कि बहुत से भारतीय मां-बाप बेटियों से ज्यादा अहमियत बेटों को देते हैं। हमने उन पतियों के बारे में भी सुना है जो अपनी पत्नी को पीटते हैं। हम लोगों को यह शिकायत करते सुनते हैं कि बेटों के मुकाबले बेटियों को पालना कितना मुश्किल है। लेकिन, आज के भारत में मर्द होना भी आसान नहीं है। इसके लिए आपको अमीर, कामयाब और बेडरूम में बांका जवान होना पड़ेगा। तो रेप के लिए आखिर किसे कसूरवार माना जाए? जानकार बताते हैं कि भारत में हिंसा एक बड़े सामाजिक-राजनीतिक संकट का संकेत है। यहां मर्दों को अपनी मर्दानगी खोने का डर सताने लगा है। उनकी दलील है कि रेप की बढ़ती घटनाओं को वैश्वीकरण और हिंदुस्तानी महिलाओं की बढ़ी हुई आर्थिक आजादी के संदर्भ से काटकर नहीं देखा जाना चाहिए। मर्द अब न तो दफ्तरों में अपना दबदबा कायम रख पा रहे हैं, न घर में, और न सार्वजनिक स्थानों पर। इससे उनमें बेचैनी है।

इसके साथ ही इंटरनेट ने पॉर्न को हिंदुस्तानी मर्दों के मोबाइल तक ला दिया है। संदेश यह कि औरतों के साथ आप जो करना चाहें, कर सकते हैं। सेक्सुअलिटी हर तरफ इतराती दिखती है। उभरी छातियां होर्डिंगों से आपको घूरती रहती हैं। सेक्सी विज्ञापन अखबारों से उछल कर सामने आ जाते हैं। मर्द उलझन में हैं। समाज उन्हें नहीं बता पा रहा कि उनका स्थान वास्तव में कहां है। पारंपरिक हदें आधुनिक सीमाओं के साथ घुल-मिल गई हैं। ऐसे में मर्दानगी जताना और भी मुश्किल हो जाता है। समस्या यह नहीं है कि दिल्ली या कोई भी हिंदुस्तानी शहर कितना सुरक्षित है। बात यह है कि इस समाज में- हमारे समाज में- बदलाव कैसे लाया जाए। एक संवेदनशील इंसान के तौर पर बेवकूफाना हिंसा की घटनाओं पर हमारा गुस्से में आ जाना स्वाभाविक है। लेकिन हमें गहराई में जाकर इनके कारणों की तलाश करनी चाहिए। हमें महिलाओं के खिलाफ हिंसा की स्वीकार्यता को खारिज करना चाहिए और इसके प्रति जीरो-टॉलरेंस की संस्कृति विकसित करनी चाहिए। हमें सत्तासीन लोगों पर लगातार यह दबाव बनाना चाहिए कि वे डराने-धमकाने की इस संस्कृति को किसी भी कीमत पर बदलने का प्रयास करें।

बेटा-बेटी एक समान
मिरगे या उन जैसों को छोड़िए। कोई भी महिला उनसे बेहतर काम कर सकती है। खासकर मांएं। उन्हें चाहिए कि वे अपने बेटों को सिखाएं कि किसी भी लड़की को मारना, गलत इरादे से छूना और घूरना अच्छी बात नहीं है। उन्हें कहना चाहिए कि 'लड़का और लड़की, दोनों एक समान हैं, दोनों में से कोई भी एक दूसरे से अच्छा या बुरा नहीं है।' सबसे बड़ी बात, मांएं अपने बेटों को यह सिखाएं कि वे औरतों को भी इंसान समझकर उनकी इज्जत करें।
(लेखिका फिनलैंड मूल की पत्रकार हैं और बेस्टसेलर नॉवेल 'ऑपरेशन लिपस्टिक' के लिए चर्चा में हैं)

http://navbharattimes.indiatimes.com/thoughts-platform/viewpoint/its-not-easy-to-be-a-man-in-india/articleshow/31116712.cms

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