Thu, 16 Jan 2014 02:03 PM (IST)
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दुष्कर्म के झूठे मामले में फंसाने पर आरोपी को मुआवजा देने के आदेश का अधिकार अदालत के पास होना चाहिए। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह इस दिशा में जरूरी कानूनी संशोधन करे। दुष्कर्म से जुड़े एक मामले में आरोपी को बरी करने का फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी द्वारका फास्ट ट्रैक कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र भट्ट ने की। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में अदालत को सशक्त किया जाना चाहिए, ताकि दुष्कर्म के झूठे आरोप से मुक्त आरोपी को मुआवजा देने का आदेश राज्य या ऐसे मामला दायर करने वाले को दे सके। इस मामले में अदालत ने सख्ती दिखाते हुए शिकायतकर्ता द्वारा अदालत के समक्ष झूठे सुबूत पेश करने के लिए सीआरपीसी की धारा 344 के अंतर्गत उस पर अलग से मामला चलाने का भी आदेश दिया।
न्यायाधीश ने कहा कि अदालत ऐसे मामलों में मुआवजा देने का आदेश दे सके, इसके लिए कानून में संशोधन करना जरूरी है। इसके लिए या तो सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 357 में संशोधन किए जाने या फिर एक नई धारा जोड़ने की जरूरत है। अदालत ने कहा कि दुष्कर्म के कई मामले ऐसे होते हैं, जिसमें आरोपी को झूठा फंसाया जाता है। इस दौरान आरोपी को पुलिस हिरासत में या जेल जाना पड़ता है। वह मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना के साथ सामाजिक तिरस्कार के दौर से गुजरता है। बाद में जब सुनवाई के दौरान उस पर लगे आरोप झूठे साबित होते हैं तब भी उसके लिए समाज में जीना कष्टकर होता है। इन बातों को देखते हुए दुष्कर्म के झूठे मामलों में बरी किए लोगों को मुआवजा पाने का पूरा हक है। अदालत ने फैसले की प्रति केंद्रीय विधि सचिव व विधि आयोग को भेजने का निर्देश दिया, ताकि इस पर विचार किया जा सके।
यह था मामला:
पीड़िता की तरफ से मार्च 2013 में पुलिस में मामला दर्ज कराया गया था। पीड़िता ने बताया था कि आरोपी ने चार-पांच माह पूर्व उसके साथ दुष्कर्म किया था। मामले का खुलासा करने पर आरोपी ने उसे व उसकी बेटी को मारने की धमकी दी थी। मुकदमे की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पीड़िता के बयानों में कई जगह विरोधाभास पाया। बाद में कोर्ट ने पाया कि पीड़िता व आरोपी के बीच संबंध सहमति पर आधारित थे। जब दोनों के बीच के संबंध का पता उसके पति को चला तब दुष्कर्म का मामला दायर किया गया। साक्ष्यों से यह भी पता चला कि पीड़िता मामला दायर करने के बाद भी आरोपी के संपर्क में थी। यहां तक कि मामला दायर करने के तीन दिन बाद जब पीड़िता ने फोन कर आरोपी को एक जगह बुलाया था, तब आरोपी वहां उससे मिलने पहुंच गया था।
http://www.jagran.com/news/national-one-must-get-compasation-on-falls-cases-of-rape-11014563.html?src=p2
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दुष्कर्म के झूठे मामले में फंसाने पर आरोपी को मुआवजा देने के आदेश का अधिकार अदालत के पास होना चाहिए। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह इस दिशा में जरूरी कानूनी संशोधन करे। दुष्कर्म से जुड़े एक मामले में आरोपी को बरी करने का फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी द्वारका फास्ट ट्रैक कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र भट्ट ने की। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में अदालत को सशक्त किया जाना चाहिए, ताकि दुष्कर्म के झूठे आरोप से मुक्त आरोपी को मुआवजा देने का आदेश राज्य या ऐसे मामला दायर करने वाले को दे सके। इस मामले में अदालत ने सख्ती दिखाते हुए शिकायतकर्ता द्वारा अदालत के समक्ष झूठे सुबूत पेश करने के लिए सीआरपीसी की धारा 344 के अंतर्गत उस पर अलग से मामला चलाने का भी आदेश दिया।
न्यायाधीश ने कहा कि अदालत ऐसे मामलों में मुआवजा देने का आदेश दे सके, इसके लिए कानून में संशोधन करना जरूरी है। इसके लिए या तो सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 357 में संशोधन किए जाने या फिर एक नई धारा जोड़ने की जरूरत है। अदालत ने कहा कि दुष्कर्म के कई मामले ऐसे होते हैं, जिसमें आरोपी को झूठा फंसाया जाता है। इस दौरान आरोपी को पुलिस हिरासत में या जेल जाना पड़ता है। वह मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना के साथ सामाजिक तिरस्कार के दौर से गुजरता है। बाद में जब सुनवाई के दौरान उस पर लगे आरोप झूठे साबित होते हैं तब भी उसके लिए समाज में जीना कष्टकर होता है। इन बातों को देखते हुए दुष्कर्म के झूठे मामलों में बरी किए लोगों को मुआवजा पाने का पूरा हक है। अदालत ने फैसले की प्रति केंद्रीय विधि सचिव व विधि आयोग को भेजने का निर्देश दिया, ताकि इस पर विचार किया जा सके।
यह था मामला:
पीड़िता की तरफ से मार्च 2013 में पुलिस में मामला दर्ज कराया गया था। पीड़िता ने बताया था कि आरोपी ने चार-पांच माह पूर्व उसके साथ दुष्कर्म किया था। मामले का खुलासा करने पर आरोपी ने उसे व उसकी बेटी को मारने की धमकी दी थी। मुकदमे की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पीड़िता के बयानों में कई जगह विरोधाभास पाया। बाद में कोर्ट ने पाया कि पीड़िता व आरोपी के बीच संबंध सहमति पर आधारित थे। जब दोनों के बीच के संबंध का पता उसके पति को चला तब दुष्कर्म का मामला दायर किया गया। साक्ष्यों से यह भी पता चला कि पीड़िता मामला दायर करने के बाद भी आरोपी के संपर्क में थी। यहां तक कि मामला दायर करने के तीन दिन बाद जब पीड़िता ने फोन कर आरोपी को एक जगह बुलाया था, तब आरोपी वहां उससे मिलने पहुंच गया था।
http://www.jagran.com/news/national-one-must-get-compasation-on-falls-cases-of-rape-11014563.html?src=p2
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