Tuesday, March 4, 2014

पत्नी-पीड़ित भी चुनाव मैदान में कूदने को तैयार!

 सोमवार, 3 मार्च, 2014 को 10:00 IST तक के समाचार
देश भर में इन दिनों चुनावी सरगर्मी तेज़ी से बढ़ रही है. राजनीति में किस्मत आजमाने वाले लोगों की संख्या में तेज़ी आई है और देश भर में कई समूह राजनीतिक दलों से अपनी-अपनी मांग को लेकर भरोसा चाहते हैं.
ऐसे में उत्तर प्रदेश के कानुपर में अपनी पत्नियों से पीड़ित पुरुषों का समूह भी राजनीतिक दलों से अपनी समस्या का हल चाहता है.
यह समूह हर शनिवार को कानपुर के कौशिक पार्क में क़रीब तीन बजे जमा होता है. इस समूह का ना तो आयुवर्ग समान है, ना ही पारिवारिक पृष्ठभूमि और ना ही आर्थिक हैसियत. लेकिन सबके सब पत्नी द्वारा लगाए गए दहेज मांगने या उत्पीड़न करने का मुकदमा लड़ रहे हैं.
इन पीड़ित पतियों को एक छत के नीचे लाने और उनकी आवाज़ को बुलंद करने का ज़िम्मा उठाया है दामन वेलफेयर सोसाइटी नामक एक संस्था ने.

चुनाव की तैयारी

चुनाव को नजदीक देख ये समूह चुनाव मैदान में उतरने की सोच रहा है. संस्था को चलाने वाले अनुपम दुबे ने बीबीसी से कहा, "राजनीतिक पार्टियों से हमारी मांग है की हमारी बातें सुनी जाएँ. पुरुषों पर अत्याचार बंद हो. अगर ऐसा नहीं होता है तो सभी पत्नी पीड़ित पुरुष एक साथ मिलकर आने वाले चुनाव में कूद पड़ेंगे."
उनके चुनाव लड़ने से क्या होगा, इस सवाल से अनुपम निराश नहीं होते हैं, वह बताते हैं, "पीड़ित पुरुषों की संख्या बढ़ती जा रही है. उनसे जुड़े कई और व्यक्ति भी पीड़ित होते हैं. हम भी एक वोट बैंक हैं. अगर राजनीतिक दल हमारी बात नहीं सुनते तो हम भी चुनाव लड़ेंगे. हम यह दावा नहीं करते की हम 50 या 100 सीट जीत लेंगे. पर अगर हमारा कोई प्रत्याशी 50, 000 वोट पाता है तो लोगों को यह पता तो चलेगा की हमारी भी संख्या बड़ी है."
दामन वेलफेयर सोसाइटी चाहता है की जो पार्टी केंद्र में सरकार बनाए वह एक पुरुष मंत्रालय और एक पुरुष आयोग का गठन करे.
इस संस्था की शुरुआत दो साल पहले हुई थी और इसकी मांग है कि महिला हित या उत्थान के नाम पर पुरुषों का उत्पीड़न बंद हो और किसी भी क़ानून का दुरुपयोग न हो. संस्था का दावा है की वह पत्नी पीड़ित पुरूषों को सलाह दे रहा है और कानूनी मदद कर रहा है.

पुरुष मंत्रालय की मांग

अनुपम दुबे ने कहा, "जो भी क़ानून हैं या बनाए जा रहे हैं, वह लिंग भेद से ऊपर होने चाहिए."
38 साल के अनुपम दुबे ने अपने को पत्नी पीड़ित पति बताते हुए कहा, "मेरी शादी 2004 में हुई थी. 2007 में मेरी पत्नी ने मेरे ऊपर दहेज़ मांगने का आरोप कानपुर के किदवई नगर थाने में दर्ज करवाया. पुलिस ने मुझे निर्दोष पाया. मेरी पत्नी ने 2008 में उन्ही धाराओं के तहत फिर से कानपुर के रायपुरवा थाने में केस लिखवाया. मामला अदालत में था कि उसी साल उसने कानपुर के बिठूर थाने में फिर एक और केस उन्ही धाराओं के तहत दर्ज किया."
अनुपम सॉफ्टवेयर कंसलटेंट थे, लेकिन महीने में 20 दिन अदालतों के चक्कर काटने के चक्कर में उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी.
उनका दावा है कि वह क़रीब 200 पत्नी पीड़ितों की मदद कर रहे हैं.
कई वर्षों से महिला अधिकारों के लिए लड़ने वालीं नीलम चतुर्वेदी कहतीं हैं, "भारत एक पुरुष प्रधान देश रहा है इसलिए अब महिला-प्रधान क़ानून होने चाहिए और बन रहे हैं. पर अगर पुरुषों को लग रहा है की एक पुरुष मंत्रालय या पुरुष आयोग हो तो वह ठीक है."

'पुरुष भी हैं प्रताड़ित'

(अनुपम दुबे करीब 200 पत्नी पीड़ितों की मदद का दावा करते हैं.)
नीलम चतुर्वेदी ने बताया कि पुरुष भी प्रताड़ित होते हैं पर उनकी संख्या बहुत ही कम है.
कानपुर के पीपीएन कॉलेज के समाज शास्त्र विभाग के अध्यक्ष तेज बहादुर सिंह कहतें हैं, "आने वाले दिनों में पीड़ित पुरुषों की संख्या बढ़ेगी क्योंकि महिलाओं का सशक्तिकरण हो रहा है. बात महिला या पुरुष या स्वर्ण या दलित की नहीं है. जिसके पास ताक़त होती है वह दूसरे का शोषण करता है. यह समाज शास्त्र कहता है. आज महिलाओं के पास ताक़त है और ताक़त बढ़ रही है. तो पुरुषों को लगेगा की उनका शोषण हो रहा है."
हालांकि तेज बहादुर कहते हैं कि पीड़ित पुरुष भी समाज का अंग हैं और उनकी बातों को सुना जाना चाहिए.
कानपुर में पिछले 25 सालों से एक अंग्रेज़ी दैनिक में काम कर रहे सिसिल लूथर कहते हैं कि यह बात तो सही है मीडिया भी पुरुषों के ख़िलाफ़ हो रहे उत्पीड़न पर ध्यान नहीं देता.

लूथर कहते हैं, " किसी महिला के उत्पीड़न की ख़बर सुर्ख़ियां बनती हैं पर पुरुष पर अत्याचार होता है तो उसे कोई भी प्रेस उसे अहमियत नहीं देता."

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